Sunday, November 02, 2008

बिहारियों ने खुले दिल से अपनाया सबको

A Jagran-Yahoo Report

 
Nov 02, 05:40 pm

पटना। देश में आज घृणा की राजनीति को हथियार बनाकर अपना कद बढ़ाने की पिपासा में बिहार के लोगों को भले ही निशाना बनाया जा रहा हो, लेकिन बिहार के लोगों ने अतिथि देवो भव: की उक्ति को सदा ही आत्मसात किया है और अपने राज्य में अन्य प्रांतों के लोगों को न सिर्फ रोजगार करने का मौका दिया, बल्कि अपनों से भी ज्यादा सम्मान और इज्जत देकर उन्हें संसद तक पहुंचाया है।

महाराष्ट्र समेत देश के अन्य प्रांतों में बिहार का आम आदमी क्षेत्रवाद के नाम पर घृणा की राजनीति करने वाले वोट के सौदागरों का निशाना बन रहा है, लेकिन इसी आम आदमी ने कभी सरोजनी नायडू, जे.बी. कृपलानी, अशोक मेहता, मीनू मसानी, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीस, चंद्रशेखर, मोहम्मद यूनुस सलीम और शरद यादव को लोकसभा में भेजते समय उनके प्रांत का नाम नहीं पूछा और न ही कभी किसी के मन में यह संदेह रहा कि वे संसद में बिहार के हित की बात नहीं करेंगे। आजादी के पूर्व ही हुए चुनाव में सरोजनी नायडू बिहार से चुनी गई थी। इसके बाद कांग्रेसी नेता जेबी कृपलानी वर्ष 1953 में भागलपुर से उप चुनाव जीतकर लोकसभा के सदस्य बने थे। इससे पूर्व देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में जब राजेंद्र प्रसाद ने पद ग्रहण किया था तब उन्होंने अपने प्रांत बिहार के किसी व्यक्ति को अपना सचिव नहीं बनाया बल्कि इसके लिए उन्होंने आचार्य कृपलानी को ही चुना था। दूसरे लोकसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने महाराष्ट्र के अशोक मेहता को मुजफ्फरपुर से अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में उनके सामने किशोरी प्रसन्न सिंह जैसे कद्दावर नेता के होने के बावजूद राज्य की जनता ने उन्हें भारी मतों से विजयी बनाया था। उस समय सत्ता में रही कांग्रेस ने भी उनका विरोध नहीं करके यह संकेत दिया था कि वह विपक्ष की राजनीति को टकराव की राजनीति नहीं समझती थी और न बनने देना चाहती है। कांग्रेस के इस निर्णय का उस समय राष्ट्रव्यापी स्वागत हुआ था।

1962 में झारखंड पार्टी के समर्थन से तत्कालीन स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मीनू मसानी रांची से लोकसभा के लिए चुने गए। उस समय भी बिहार में बाहरी उम्मीदवार को लेकर कोई चर्चा नहीं थी। इसके बाद केरल के रविंद्र वर्मा 1977 में रांची से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे और केंद्र सरकार में श्रम मंत्री भी बने। महाराष्ट्र के ही मूल निवासी मधु लिमये को बिहार के लोगों ने अपनाने में कोई हिचक नहीं दिखाई। मधु लिमये को दो बार मुंगेर और एक बार बंाका से लोकसभा भेजा। उन्होंने अपना काफी समय अपने क्षेत्र को दिया। इस कारण क्षेत्र के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। इसी तरह महाराष्ट्र के ही मूल निवासी जार्ज फर्नाडिस को बिहार के लोगों ने 1977, 1980, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में चुनकर लोकसभा में पहुंचाया। यह कहना गलत नहीं होगा कि फर्नाडिस को बिहार में लोग आज भी एक मराठी से ज्यादा बिहारी मानते हैं। बिहार की एक क्षेत्रीय पार्टी समता पार्टी ने उन्हें अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। बाद में वह समता पार्टी के विघटन के बाद जनता दल यूनाइटेड के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।

शरद यादव के जदयू अध्यक्ष बनने के बाद फर्नाडिस भले ही पार्टी से नाराज चल रहे हो, लेकिन आज भी वह जदयू नेता की हैसियत से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक हैं। जद-यू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज भी उन्हें अपना नेता बताते हैं। जद-यू नेता शरद यादव भी मध्यप्रदेश के हैं लेकिन उन्होंने भी बिहार को अपनी कर्मभूमि बना लिया है। वह 1991, 1996 और 1999 में मधेपुरा से लोकसभा के लिए चुने गए। इस समय यादव बिहार से ही राज्यसभा के सदस्य है।

इसी तरह हैदराबाद के रहने वाले यूनुस सलीम 1991 में कटिहार से विजयी हुए थे लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह कभी कटिहार नहीं आए। समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे, लेकिन बिहार की राजनीति से वह काफी जुड़े थे। उन्होंने भी 1991 में महाराजगंज से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए, लेकिन बाद में उन्होंने महाराजगंज की सीट छोड़ दी क्योंकि वे अपने गृह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के बलिया से भी लोकसभा के लिए चुने गए थे। राज्यसभा में भी बाहरी लोगों के चुने जाने का किस्सा नया नहीं है। मोहम्मद ओबेदुल्ला खां आजमी, पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल और वर्तमान केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल शामिल है। यही नहीं बिहार के कई नेता अन्य राज्यों से चुनकर राज्यसभा में पहुंचे हैं, उनमें तारिक अनवर और संजय निरूपम तो महाराष्ट्र से ही राज्यसभा में गए। अन्य राज्यों से भी ऐसे कई लोग हैं जो लोकसभा और राज्यसभा में पहुंचे हैं जो उस राज्य के निवासी नहीं है। उनमें पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, वर्तमान प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री एसआर बोम्मई समेत कई नेता शामिल हैं।

जाने माने गांधीवादी रवि अहमद ने कहा कि यह दौर बिहार के लोगों के लिए परेशानी का है लेकिन बिहार ने कभी क्षेत्रवाद की ओर नहीं सोचा उन्होंने कहा कि सच्चिदानंद जी ने [बिहार द इन्टरल कालोनी] नाम से एक पुस्तक भी लिखी थी और उसमें कहा गया है कि बिहार में हर प्रांत के लोग आये और यहां न सिर्फ रोजगार पाया बल्कि मान-सम्मान भी पाया। बिहार में प्राकृतिक संसाधन होने के कारण विभाजन से पहले इसे भारत का रीढ़ कहा जाता था इसके कारण ही यहां टाटा जैसे उद्योग की स्थापना हुई। इसके अलावा भी अन्य प्रांतों के कई लोगों ने छोटे-बडे़ उद्योग लगाए जिसमें बड़ी संख्या में मराठी, गुजराती, पंजाबी और राजस्थानी लोग शामिल थे। उन्होंने कहा कि उद्योग तो बिहार में स्थापित किया गया लेकिन उसके कार्यालय मुंबई और कलकत्ता में खोले गए। इतना ही नहीं बिहार को उसके प्राकृतिक संसाधनों से मिलने वाली रायलटी भी कम दी गई। उन्होंने कहा कि बिहार के पिछड़ेपन के लिए ये कारण भी कम जिम्मेवार नहीं है।





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1 comments:

Anonymous said...

I wish to draw your attention towards one fact George Fernandes is originaaly from Mangalore (Karnataka) not from Maharashtra