Wednesday, March 12, 2008

मसूर की खेती ने बदली किसान की तकदीर

औरंगाबाद/पटना। धान-गेहूं की खेती से ऊब चुके किसान अब दलहन की खेती में लग गये है। इस खेती ने उनकी तकदीर बदल दी है। नकद पैसे मिलने से वे खुशहाल है। किसान अब अखबारों में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दलहन की कीमतों में आ रही उछाल को(कीमत) देखते है और उसी भाव पर व्यवसायियों को अपनी फसल देते है। देव प्रखंड के बिजौली में मसूर की खेती देखने लायक है। यहां के किसान आलोक कुमार सिंह ने दस एकड़ में मसूर की खेती की है। सिंह ने बताया कि एक एकड़ में धान से सात आठ हजार की आमदनी होती है जबकि मसूर में पन्द्रह से बीस हजार रुपए तक मिलते है। धान की खेती में छह माह लगते है जबकि मसूर की खेती में मात्र तीन माह। कृषि स्नातकोत्तार की पढ़ाई कर खेती में लगे आलोक ने बताया कि 'मसूर की मार्केटिंग में कोई समस्या नहीं है, खेत में फसल देखकर व्यवसायी पैसे दे देते है।' उन्होंने कहा कि मसूर की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक है जिससे कीमत भी अच्छी मिलती है। दो खेतों में लगी मसूर की फसल दिखाते हुए उन्होंने बताया कि इसमें कृषि विभाग द्वारा दिए गए प्रजनन बीजों को लगाया था जो कमजोर है परंतु स्वयं द्वारा उत्पादित बीज को जिस खेत में लगाया उसकी उपज अधिक है। बुआई के लिए 'जीरो टील' मशीन की चर्चा करते हुए कहा कि यह मशीन कृषि के लिए क्रांति है। मशीन से बुआई करने पर खर्च कम पड़ता है और उपज अधिक होती है। कहा कि औषधीय पौधे से अधिक पैसे मसूर की खेती में है। खेती की आमदनी से आलोक अपने बच्चों को 'हाईटेक शिक्षा' दे रहे है। उनके बच्चे कोयम्बटूर, आगरा व इंदौर में पढ़ते है। बिजौली में हो रही मसूर की खेती के संबंध में पूछे जाने पर जिला कृषि पदाधिकारी शिलाजीत सिंह ने कहा कि किसान की मेहनत मसूर की खेत में दिखाई पड़ती है। उन्होंने कहा कि दलहन की खेती किसानों के लिए लाभदायक है परंतु अधिकांश किसान अब भी धान व गेहूं की पारंपरिक खेती में लगे है।

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