Tuesday, June 24, 2008

सब्जी ने बदली पकडिया की तस्वीर


मधुकर मिश्र, बेतिया : भोजपुरी में एक कहावत है-नौकरी करऽ सरकारी न त उपजावऽ तरकारी। इस कहावत को चरितार्थ करते हुए पश्चिमी चंपारण के नौतन प्रखंड के पकडि़या गांव के लोगों ने जैविक खाद के माध्यम से सब्जी की खेती कर गांव की तस्वीर बदल डाली है। बिना सरकारी नौकरी या किसी मदद के यहां के ग्रामीणों ने न केवल स्वावलंबन की मिसाल पेश कर आर्थिक समृद्धि हासिल की, बल्कि चंपारण में जैविक ग्राम का दर्जा पाने का गौरव प्राप्त किया है। इतना ही नहीं, कृषि विभाग की ओर से 15 नवंबर 2007 को राज्य स्तर पर आयोजित सोनपुर मेले में इस गांव के दो किसान भृगुरासन प्रसाद व रामनाथ प्रसाद ने कंद ओल व बैगन में बेहतर प्रदर्शन किया। इस बीच, 13 दिसंबर 2007 को आयोजित जिला स्तरीय उद्यान पंडित प्रतियोगिता में जिन 46 लोगों को पुरस्कृत किया गया, उनमें सिर्फ 11 पुरस्कार पकडि़या के किसानों को मिले। उद्यान पंडित प्रतियोगिता में बैगन और कंद ओल में प्रथम और मसाला हल्दी में द्वितीय पुरस्कार भृगुरासन प्रसाद, कोहड़ा में प्रथम रामनाथ प्रसाद, कोहड़ा, केला, कद्दू, बैगन में द्वितीय पुरस्कार श्रीकांत उर्फ हीरालाल प्रसाद को मिला। अरेराज-बेतिया मुख्य पथ में स्थित 35 परिवारों वाले इस गांव की आबादी करीब 300 है, जिनमें एक ग्रामीण स्नातक, एक इंटर और दो दर्जन मैट्रिक पास हैं। महिलाओं में एक भी मैट्रिक पास नहीं। यहां सरकारी नौकरी करने वाले भी नहीं हंै। फिर भी इस गांव के लोगों ने अपनी तकदीर खुद लिखने की ठानी। करीब एक दशक पूर्व से 25 परिवार सब्जी की खेती कर रहे हैं। इनमें से श्रीकांत उर्फ हीरालाल एवं भृगुरासन प्रसाद को ही सेंट्रल बैंक से 50 हजार रुपये के केसीसी और जिला बागवानी विभाग से केंचुआ इकाई के बड़े टैंक की सुविधा मिल पायी है। वर्ष 2007 में कृषि व बागवानी विभाग ने यहां के 15 किसानों को अनुदानित छोटे पैमाने का केंचुआ इकाई देते हुए इस गांव को जैविक ग्राम घोषित किया। हालांकि कई किसानों का कहना है कि बेहतर उत्पादन के बावजूद धूमनगर सेंट्रल बैंक में केसीसी के लिए दो वर्ष से दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। किसान श्रीकांत प्रसाद का कहना है कि यहां के किसानों के पास तीन से पांच एकड़ भूमि है। सब्जी की खेती के बूते पूरे परिवार का खर्च निकाल कर सभी प्रतिवर्ष 20 से 50 हजार की बचत कर रहे हैं। किसान भृगुरासन प्रसाद बताते हैं कि फसल चक्र के अलावा मिश्रित खेती करने से वे ज्यादा लाभान्वित हंै। अक्टूबर माह में आलू में हरा मिर्च या बैगन अथवा आलू में कद्दू और फिर गोभी की मिश्रित खेती करते हैं। एक ही खेत से तीन सब्जी की खेती से ज्यादा फायदा है। प्रतिवर्ष सितंबर में खेत खाली होते हैं और अक्टूबर से नवंबर तक बुआई शुरू। किसानों का कहना है कि सब्जी को बाजार तक ले जाने के लिए वाहन, सहकारी संगठन, सब्जी आधारित प्रसंस्करण उद्योग, कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसे संसाधन जुटाने की योजना है। बहरहाल, पकडि़या के करीब डेढ़ दर्जन किसानों के मकान पक्के हो चुकेहैं। बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त करने लगे हैं। महिलाएं भी सब्जी की खेती में पुरुषों का सहयोग कर रही हैं। यहां फकिराना सिस्टर्स सोसायटी के सहयोग से 2006 में महिलाओं के तीन स्वयं सहायता समूहों का गठन हुआ। इनमें शामिल 46 महिलाएं बचत के साथ-साथ सब्जी का उत्पादन कर रही हैं।...

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