Wednesday, April 15, 2009

वैशाली में विकास ही मुद्दा

संसदीय क्षेत्र के तहत छह विस सीटों में से एक पर भी नहीं जल सकी थी लालू की लालटेनपटना। पूरे देश में गांवों के विकास के लिए `कलम' चलाने वाले केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के अपने वैशाली संसदीय क्षेत्र में इस बार `िवकास' ही बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। राजपूत, यादव एवं भूमिहारों के दबदबा वाले इस क्षेत्र में रघुवंश बाबू लगातार चार बार से जीतते चले आ रह ðहैं। यह बात अलग है कि उनके संसदीय क्षेत्र की सभी 6 विधानसभा सीटों पर जदयू-भाजपा गठजोड़ का कब्जा है। उनकी सीट के अंतर्गत आने वाले एक भी विधानसभा क्षेत्र में फिलवक्त लालू की `लालटेन' नहीं जल रही है।मीनापुर विधानसभा क्षेत्र जो मुजफ्फरपुर से कटकर वैशाली में आया है, उस पर भी जदयू का कब्जा है। प्रदेश की सत्ताधारी जदयू ने इस बार राजद नेता के खिलाफ विजय कुमार शुक्ल उर्फ मुन्ना को मैदान में उतारा है। खास बात यह है कि राजद-लोजपा से संबंधों में आई खटास के बाद कांग्रेस ने यहां से पूर्व मंत्री हिंद केसरी यादव को मैदान में उतार कर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। हालांकि यहां से बसपा ने भी शंकर महतो को अपना उम्मीदवार बनाया है।भगवान बुद्ध एवं महावीर से जुड़े इस ऐतिहासिक संसदीय क्षेत्र में हाल के परिसीमन के बाद खासा बदलाव आया है। इससे वैशाली क्षेत्र ने मुजफ्फरपुर से मीनापुर विधानसभा सीट पाई है तो लालगंज विधानसभा सीट खोया भी है। भूमिहार बहुल विधानसभा क्षेत्र लालगंज अब हाजीपुर में चला गया है, जो लोजपा मुखिया रामविलास पासवान का चुनावी क्षेत्र है। वर्ष 2004 के चुनाव में राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह का लालगंज के जदयू विधायक विजय कुमार शुक्ल उर्फ मुन्ना से ही सामना हुआ था जो बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े थे। हालांकि जदयू ने राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ आधिकारिक रूप से हरेंद्र कुमार को चुनाव मैदान में खड़ा किया था परंतु टक्कर राजद प्रत्याशी एवं बाहुबली निर्दलीय उम्मीदवार के बीच ही हुई। निर्दलीय मुन्ना शुक्ल दूसरे स्थान पर रहे और जदयू के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर पहुंच गए। निर्दलीय व जदयू दोनों उम्मीदवारों पर रघुवंश प्रसाद सिंह का कद भारी पड़ा और वे विजयी घोषित हुए। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि जदयू उम्मीदवार व निर्दलीय मुन्ना शुक्ल में से कोई एक उम्मीदवार चुनाव में खड़ा होता तो मुकाबला काफी कड़ा हो सकता था। इस बार जदयू ने मुन्ना शुक्ल को `तीर' देकर मैदान में भेजा है।परिसीमन में लालगंज के बदले वैशाली को मीनापुर विधानसभा क्षेत्र मिला है, जो विशुद्ध रूप से कुर्मी व कोयरी बहुल है। कुर्मी व कोयरी पर नीतीश सरकार की पकड़ है। बिहार के मौजूदा जातीय समीकरण के कारण इसका फायदा जदयू उम्मीदवार को मिल सकता है। परंतु लालगंज के हटने से राजद को थोड़ा-बहुत राहत पहुंच सकती है। वैशाली में भगवान बुद्ध के पांव तो पड़े ही, यह स्थान महावीर के जन्म स्थान के लिए भी प्रसिद्ध है। शहर से कुछ ही दूर बासोकुंड इलाका है जो जैनियों के पवित्र तीर्थंकर महावीर के जन्मस्थान के रूप में ख्यात है। किंतु जमीनी हकीकत यह है कि बासोकुंड की महत्ता को देखते हुए उस इलाके का विकास नहीं दिखाई देता है।सात दशक बीत जाने के बावजूद 1931 की जनगणना के आधार पर ही वैशाली संसदीय क्षेत्र के जातीय आंकड़ों का अनुमान लगाया जाता है। उस समय के आंकड़ों के मुताबिक पूरे बिहार में पारंपरिक अगड़ी जातियां ब्राह्मण, भूमिहार एवं राजपूत की संख्या बहुत थी। पर आंकड़ों के अनुसार बिहार में 4.7 प्रतिशत ब्राह्मण, 4.2 प्रतिशत राजपूत एवं 2.9 प्रतिशत भूमिहार है। अगड़ों में 1.2 प्रतिशत ही कायस्थ है। इस तरह राज्य में चारों अगड़ी जातियों की संख्या 13 प्रतिशत है। कोयरी 4.1 प्रतिशत एवं कुर्मी 3.6 प्रतिशत है। दलितों की संख्या 14.6 प्रतिशत है।वैशाली संसदीय क्षेत्र छठी लोकसभा (1977) से राजनीतिक परिदृश्य में आया। वैशाली में राष्ट्रीय औसत की तुलना में राजपूतों की संख्या काफी है। यहां करीब तीन लाख राजपूत, ढाई लाख यादव एवं दो लाख भूमिहार मतदाता बताए जाते है। अल्पसंख्यकों में मुसलमानों की करीब 50 हजार संख्या बताई जाती है।

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