मुजफ्फरपुर, : अपने यहां भले ही पूछ न हो, लेकिन विदेशों में तो मुजफ्फरपुर की माटी सोना बन रही है। कई स्तरों पर लगातार पिछड़ने के बावजूद यहां की लीची की धाक विदेशों में बनी हुई है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले माह बैंकाक विवि और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिक राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के पूसा और सबौर की विशेष यात्रा के दौरान यहां की लीची पर विशेष अनुसंधान के लिए मुजफ्फरपुर के तीन बागानों से मिट्टी अपने साथ ले गये। इतना ही नहीं यह टीम अप्रैल में यहां के किसानों को वहां प्रशिक्षण देने के लिए न्यौता देते गये। इससे कई वरीय वैज्ञानिकों ने अपनी माटी पर गर्व महसूस किया है। हाल के वर्षों में मुजफ्फरपुर की लीची राष्ट्रीय बाजारों में पिछड़ी है। वजन, आकार
और कम समय में खराब होने जैसे कई कारणों से उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश की लीची बाजार में धाक जमाने लगी है, मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी साख बनी हुई है। आईसीएआर के वरीय वैज्ञानिक डा.वधावन मौली ने बताया कि आर्थिक और तकनीकी संसाधन के कारण यह बाजार की होड़ में भले थोड़ी पिछड़ गयी हो, मगर पीएच, शुगर जैसे कई अवयव अभी भी यहां की लीची को अंतरराष्ट्रीय फलक पर आगे रखे हुए हैं। पंतनगर विवि में कई वर्ष के अनुसंधान के बाद की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरांचल की शाही लीची मुजफ्फरपुर की लीची की गुणवत्ता की तुलना में 35 फीसदी तक पीछे है। पिछले सात वर्षों से प्रयोग के तौर पर विवि परिसर में लीची के दस पेड़ों पर यह अनुसंधान चल रहा था। पिछले महीने डा. डाल्विन डेथर के नेतृत्व में बैंकाक यूनिवर्सिटी की तीन व आईसीएआर के दो वैज्ञानिकों की टीम पपीता और लीची पर विशेष शोध के क्रम में पूसा और सबौर पहुंचे थे। सूत्रों के अनुसार उनके आने के एजेंडा में बतौर यहां के कुछ बागानों की मिट्टी ले जाना शामिल था। हालांकि बाढ़ के समय इसमें परेशानी हो रही थी,मगर स्थानीय वैज्ञानिकों ने अपने तरीके से उनके इस मिशन में साथ दिया।
और कम समय में खराब होने जैसे कई कारणों से उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश की लीची बाजार में धाक जमाने लगी है, मगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी साख बनी हुई है। आईसीएआर के वरीय वैज्ञानिक डा.वधावन मौली ने बताया कि आर्थिक और तकनीकी संसाधन के कारण यह बाजार की होड़ में भले थोड़ी पिछड़ गयी हो, मगर पीएच, शुगर जैसे कई अवयव अभी भी यहां की लीची को अंतरराष्ट्रीय फलक पर आगे रखे हुए हैं। पंतनगर विवि में कई वर्ष के अनुसंधान के बाद की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरांचल की शाही लीची मुजफ्फरपुर की लीची की गुणवत्ता की तुलना में 35 फीसदी तक पीछे है। पिछले सात वर्षों से प्रयोग के तौर पर विवि परिसर में लीची के दस पेड़ों पर यह अनुसंधान चल रहा था। पिछले महीने डा. डाल्विन डेथर के नेतृत्व में बैंकाक यूनिवर्सिटी की तीन व आईसीएआर के दो वैज्ञानिकों की टीम पपीता और लीची पर विशेष शोध के क्रम में पूसा और सबौर पहुंचे थे। सूत्रों के अनुसार उनके आने के एजेंडा में बतौर यहां के कुछ बागानों की मिट्टी ले जाना शामिल था। हालांकि बाढ़ के समय इसमें परेशानी हो रही थी,मगर स्थानीय वैज्ञानिकों ने अपने तरीके से उनके इस मिशन में साथ दिया।
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