



बबुआ जी आज जिंदा-जीवट शख्स से फ्रेम्ड तस्वीर बन गए। संस्मरणों के पात्र। मायूस भाजपाई व संघ के स्वयंसेवकों के पास इसका भंडार है। वाकई किसी बहुआयामी व उत्कट सक्रिय जीवन के सत्तर-पचहत्तर वर्ष कम नहीं होते। उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी बबुआ जी का कंट्रास्ट बता रहे थे-चौहत्तर आंदोलन के दौरान उनको फुलवारीशरीफ जेल में बंद किया गया। कई लोगों के घर से खाना आता था। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। जेल का खाए, वहीं फर्श पर सोए। ऐसे अनेक नमूने हैं। वे रामी बिगहा (नालंदा) इस्टेट के थे। लेकिन संपूर्ण जीवन कठिन संघर्षो में गुजार दिया। नालंदा से उनका परिवार गया आ गया। यहीं उन्होंने डा.हेडगेवार से प्रेरित हो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा स्थापित की। बिहार राज्य के लिए यह पहली शाखा थी। डा.हेडगेवार ने उन्हें गया के नगर संघचालक का दायित्व सौंपा। बाद के दिनों में वे उत्तर-पूर्व क्षेत्र (बिहार-झारखण्ड) के क्षेत्र संघचालक बने। अस्वस्थ होने के चलते तीन वर्ष पूर्व वे पद से विमुक्त हो गए। 1942 के आंदोलन में वे बंदी बनाए गए। उन्हें भागलपुर जेल में रखा गया। डा.सावरकर ने अपनी गिरफ्तारी के बाद उन्हें भागलपुर जाने का निर्देश दिया था। 1948 में वे फिर जेल गए। महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। आपातकाल (1977) में भी वे जेल गए। 1992 में श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान संघ पर प्रतिबंध के विरोध में उन्हें जेल जाना पड़ा। वे शिक्षा, संगीत, व्यापार यानी कई क्षेत्रों से गहरे जुड़े रहे। संगीत की गहरी रूचि का अंदाज इसी से किया जा सकता है कि उनका ओंकारनाथ ठाकुर, बिस्मिल्ला खां, फैयाज अली खां से व्यक्तिगत संबंध था। गया में विराट संगीत कार्यक्रम उन्हीं के नेतृत्व में संपन्न हुआ। 1952 में वे सिनेमा व्यवसाय से जुड़े। अशोक सिनेमा हाल खुला। आजीवन इसके प्रबंध निदेशक रहे। वे नालंदा कालेज (बिहारशरीफ) के सचिव थे। 1971 में इसके शताब्दी वर्ष के मौके पर तत्कालीन राष्ट्रपति डा.वीवी गिरि, ख्यात सिने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर, डा.करनी सिंह, डा.डीएस कोठारी आदि ने शिरकत की थी। इस कालेज पर डाक टिकट जारी हुआ। गया में अंतिम संस्कार उनकी दिली इच्छा थी।
1 comments:
Babuwaji ke nidhan se apruniye chhati hui hai, Bhagwan unki aatma ko Shanti de
Ajit Tiwari
www.jaimaathawewali.com
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