Wednesday, February 20, 2008

बालों में फूल लगाने की उम्र में शोध की खुशबू


जिस उम्र में लड़कियां पेड़-पौधों से आम तौर पर सिर्फ मनोरंजन का वास्ता रखती हैं और कभी-कभी बालों में लगाने के लिए फूल तोड़ लेती हैं, उसी अवस्था में फूल से जुड़े नाम वाली एक किशोरी ने 45 प्रकार के पौधों पर शोध कर लिया है। उसे इनमें से दस के औषधीय महत्व का ज्ञान हुआ है। अपने घर के आगे विभिन्न औषधीय पौधों की पौधशाला बनाकर उसे संरक्षित व संब‌िर्द्धत करना उसका शौक है। वह आयुर्वेद की जानकारी रखने वाले पिता और आधुनिक विज्ञान के शिक्षकों की अंगुली पकड़ कर वनस्पतियों पर शोध की पहली सीढि़यां चढ़ने लगी है। जिले के काको प्रखंड के बढ़ौना गांव में नवम वर्ग की छात्रा खुशबू शर्मा ने पंचायत क्षेत्र में पाये जाने वाले औषधीय पौधों से तैयार दवाइयों से गांव के गरीब-गुरबों को राहत भी दी है। अब इस किशोर वैज्ञानिक प्रतिभा की चमक राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। पड़ोसी इमलिया गांव के वैद्य नागेन्द्र शर्मा बताते हैं कि खुशबू ने तांबाजड़ी व गोलावा साग से गठिया व डायबीटीज की जो दवाएं बनायी हैं, उससे कई रोगियों को लाभ हुआ है। पिछले चार महीने के दौरान वह विभिन्न प्रतियोगिताओं मे चार पुरस्कार जीत चुकी है। सबसे पहले गत 5 अक्टूबर 2007 को जिला मुख्यालय में जैव विविधता व प्रकृति पर केंद्रित प्रतियोगिता में खुशबू को जिले में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात उसे किशनगंज में आयोजित राज्य स्तरीय बाल विज्ञान कांग्रेस में भाग लेने का मौका मिला। वहां भी उसे मगध प्रमंडल में सर्वश्रेष्ठ स्थान मिला। गत दिसम्बर माह के आखिरी सप्ताह में उसे राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए महाराष्ट्र के बारामती जाने का अवसर मिला। वहां उसे बालिकाओं के वर्ग में राज्य भर में ग्रेड बी के साथ सर्वश्रेष्ठ स्थान हासिल हुआ। क्लास में हमेशा शीर्ष स्थान पर रहने वाली खुशबू को आठवीं क्लास की परीक्षा में विज्ञान में 79 फीसदी अंक प्राप्त हुए हैं। फिलहाल इस किशोरी शोधार्थी ने गोलबासाग, बिछुआरा जड़ी कसौधी, शहर फोंका, हरसिंगार, गुडमार व मौलश्री सहित दर्जनों किस्म के पौधों-वृक्षों में पाये जाने वाले औषधीय महत्व की पहचान कर डायबिटीज, गढि़या, गंजापन , सांद व बिच्छुओं की विषनिरोधक दवाओं का प्रायोगिक तौर पर निर्माण किया है। वह बड़ी होकर सफल वैज्ञानिक बनकर स्वस्थ्य भारत के निर्माण की तमन्ना रखती है। औषधीय पौधों से तैयार तरल व चूर्ण दवाओं के प्रसंस्करण के लिए उसे अत्याधुनिक प्रयोगशाला की दरकार है। खुशबू के पिता दिनेश शर्मा उसके आयुर्वेदिक ज्ञान के स्रोत रहे हैं क्योंकि वे वर्षों से जड़ी-बूटी से ग्रामीणों का इलाज करते रहे हैं। उसके विज्ञान शिक्षक विद्यासागर व सुनील शर्मा भी उसे प्रोजेक्ट बनाने में सहयोग करते हैं। अंग्रेजी दवाओं के साइडइफेक्टस उसे पसंद नहीं है इसलिए वह आयुर्वेदिक दवाओं के चलन बढ़ाने के प्रति अपना योगदान देना चाहती है।

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