Friday, February 12, 2010

मुख्यमंत्री जी, बड़ी जालिम है शराब

पटना : शराब की बोतलों की काली कमाई ने उत्पाद विभाग की कौन कहे, मुख्यमंत्री सचिवालय के आला अधिकारियों को भी अपने इशारों पर नचाना शुरू कर दिया है। दरबार से जुड़े एक जदयू नेता को चार जिलों में देसी शराब का ठेका देकर करोड़ों की कमाई कराई गई। इस मामले में उत्पाद मंत्री ने पहले मुख्य सचिव को पीत पत्र लिखकर और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होने पर मुख्यमंत्री को नौ पन्नों का पत्र लिखकर विभाग में पिछले चार सालों से हो रहे करीब पांच सौ करोड़ के घोटाले को उजागर करते हुये इस पूरे मामले की जांच निगरानी विभाग या महालेखाकार से कराने की सिफारिश की है। उत्पाद मंत्री की अनुशंसा पर सिर्फ आयुक्त का तबादला कर सरकार मामले को रफादफा करने की उच्चस्तरीय साजिश में जुट गई है। सूत्रों के अनुसार उत्पाद और मद्य निषेध मंत्री जमशेद अशरफ ने गत 16 सिंतबर को ही मुख्य सचिव को पीत पत्र लिखकर इस घोटाले की निगरानी विभाग से जांच कराने का प्रस्ताव दिया था। चूंकि इस घोटाले में मुख्यमंत्री सचिवालय के कई आला अधिकारियों की संलिप्तता है इसलिये जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उत्पाद मंत्री ने 14 जनवरी को गंगा की लहरों पर हुई कैबिनेट की बैठक के दौरान नीतीश कुमार को अपने हाथों से नौ पृष्ठों का यह पत्र सौंपा। मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े कुछ अफसरों पर लगेइन गंभीर आरोपों के बावजूद सरकार ने इस घोटाले की जांच निगरानी विभाग को नहीं सौंपी। हां,उत्पाद आयुक्त का अवश्य तत्काल तबादला कर दिया और मामले की लीपा पोती के लिए जांच विकास आयुक्त नवीन कुमार को दे दी गयी। सूत्र बताते हैं कि मंत्री ने विकास आयुक्त की जांच पर भी संदेह जाहिर करते हुए दूसरा पीत पत्र भेजा ह,ै जिसमें सदस्य राजस्व पर्षद एसपी केशव से मामले की जांच कराने का आग्रह किया गया है। एक्साइज एक्ट में सदस्य राजस्व पर्षद ही ऐसे मामलों में सक्षम जांच पदाधिकारी होता है। मुख्य सचिव को लिखे पीत पत्र में मंत्री ने इस ओर संकेत किया है कि वैसे लोगों को देसी शराब निर्माण एवं आपूर्ति का ठेका दिया गया, जो ब्लैकलिस्टेड थे। कई लोगों ने गलत शपथ पत्र के आधार पर निविदा पा ली, तो कई ने संबंधित वांछित कागजात जमा ही नहीं किये। ठेका दिये जाने से पूर्व जब कागजात जांच की बात कही गयी, तो अफसरों ने समयाभाव का बहाना बनाया। संचिका संख्या 3सी, 5-220/07 के पृष्ठ 78 टी पर मंत्री ने इस बाबत टिप्पणी दर्ज की है। पटना और कैमूर के जिलाधिकारी ने शराब निर्माता कंपनी रावती इंटरनेशनल प्रा. लि. तथा स्पाइसी विभरेज प्रा.लि., पटना सिटी पर सरकारी उत्पाद राजस्व बकाया होने की जानकारी दी थी, लेकिन 2012 तक के लिए इन कंपनियों को देसी शराब आपूर्ति का ठेका दे दिया गया। यह सरकारी नियमों की अवहेलना है। इस पत्र में मंत्री ने स्वीकारा है कि कई बार विभाग के अफसरों ने उनकी औकात भी बतायी। इन संदर्भो से जुड़ी संचिका जुलाई में ही मांगी गयी, लेकिन नहीं दी गयी। यही हाल स्पि्रट आवंटन की उन संचिकाओं का हुआ जो पीत पत्र संख्या 744 के द्वारा मांगी गयी थीं। हद तो तब हो गयी जब राज्य बिवरेज कारपोरेशन द्वारा विदेशी शराब के क्रय मूल्य के निर्धारण में पायी गयी अनियमितताओं की जांच निगरानी एवं महालेखाकार की संयुक्त टीम से कराने के आदेश पर कार्रवाई के लिए संचिका ही मंत्री के समक्ष उपस्थापित नहीं की गयी। इस संदर्भ में मंत्री ने दोबारा पीत पत्र संख्या 401, दिसंबर 2008 के मार्फत फाइल मांगी थी। मंत्री को तब भी निराश होना पड़ा जब छोआ के चौर्य व्यापार को नियंत्रित करने के लिए मंत्री स्तर पर छापेमारी के संदर्भ में फाइल नहीं मिली। यही हाल डिस्टलरीज निर्माताओं द्वारा शराब निर्माताओं से अधिक मूल्य लेकर ब्लैक प्राइस पर बिक्री की शिकायत से संबंधित फाइल मांगी गयी। अकेले बिहार बिवरेज कारपोरेशन में डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का घोटाला हुआ है। भ्रष्ट अफसरों ने राज्य में छोआ की खपत का आकलन किये बिना छह लाख क्विंटल छोआ 13 रुपये सस्ते में उत्तर प्रदेश को बेच दिया और जब राज्य में इसकी कमी होने लगी तो वहीं से मंहगी दर में मंगा कर सत्तर लाख की नाजायज कमाई की। इस तरह बिहार के खजाने को करोड़ों रुपये की चपत लगाई।

साभार : दैनिक जागरण , पटना संस्करण - प्रथम पृष्ठ - १२ फरवरी , २०१० .

0 comments: