Tuesday, February 12, 2008

हम सबका खून लाल ही है भाई।

हम सब भारत माता की संतान हैं। फिर हम अलग-अलग कैसे हुए! महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) सुप्रीमो राज ठाकरे से जरिये चिट्ठी यह मार्मिक अपील चीन से स्पेन, गुडहोप से अलास्का तक दोस्त ढूंढ लेने की कोशिश है। सूबा बिहार के एक अनिवासी भारतीय की ठाकरे से यह गुजारिश बहुत तड़पती पहल है,जो मुंबई में उप राष्ट्रीयता और नस्ली हिंसा के बीच आदमीयत की एकजुट आवाज बनती है। लिखने वाले को उम्मीद है कि उसके शब्द पथरा नहीं जायेंगे बल्कि अंधेरे में और खुलेंगे। मान जायेंगे राज ठाकरे। जार्जिया (अमेरिका) में बसे हिमांशु प्रियदर्शी तक मुंबई में उत्तर भारतीयों को हिंसा का निशाना बनाये जाने की खबरें जाहिर हैं आकाशीय तरंगों से पहुंची होंगी। लेकिन यह अब इनकी टीस हैं। और इसी पीड़ा ने ठस यानी पत्थर सतह पर भी आदमीयत की तस्वीर उकेरने की पवित्र जिद पकड़ ली है। हिमांशु का बचपन गया व मुंगेर में गुजरा। बचपन के वे सारे दिन स्टिल्ड तस्वीर की तरह जेहन में आज भी पैबस्त हैं। उन्हें विस्थापन का दर्द मालूम है। बचपन में उन्होंने बिदेसिया भी देखा है। सात समंदर पार आज मुंबई के हालात ने उन्हें मार्मिक पीड़ा दी तब उन्होंने जरिये इंटरनेट राज ठाकरे को यह चिट्ठी लिखी जो इस संवाददाता को भी भेजी थी। हिमांशु इन दिनों जार्जिया में हैं लेकिन ढेर सारे परंपरागत और मिट्टी सनी दास्तान आज वहां भी इनकी ऊर्जा हैं।के कई पुराने मित्रों से इंटरनेट पर बात करते रहते हैं। उन्होंने लिखा है कि महाराष्ट्र का राज्यीय-भाषाई दंगा विदेशों में हम भारतीय (वी इंडियन) की भावना को शर्मसार कर रहा है। विदेशी, वहां बसे भारतीयों (खासकर बिहारियों) की मेहनत-मशक्कत-जीवट पर तरह-तरह की फब्तियां कसते रहते हैं। वैसे भी वे (यूरोपियों ने) न केवल भारतीय-बिहारी बल्कि पूरी एशियाई आबादी को कबाड़ मानते ही रहे हैं। तब जब कुछ भारतीयों की जिजीविषा ने इस अवधारणा को तोड़ा और दुनिया में अपनी कूवत का परचम लहराया है, मुंबई के ताजा हालात ने उनको हम सब पर हंसने का एक मौका मुहैया करा दिया। इसी से परेशान अनिवासी हिमांशु ने राज ठाकरे को मार्मिक अंदाज में समझाने की कोशिश की है। उन्होंने दैनिक जागरण को लंबा पत्र भेजा। इसमें रहनुमाओं से उनका आग्रह है-अगर हम बिहार, उत्तरप्रदेश के विकास को आगे नहीं आएंगे तो ऐसे ही गरीबी रहेगी और हाशिए की बहुसंख्य आबादी महानगरों में रिक्शा-टैक्सी चलाने, मजदूरी करने, और जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर रहेगी। .. काश, हमारा बिहार भी विकसित होता, ताकि यहां के लोगों को अपना घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने लिखा है कि भारत का सिर दुनिया में ऊंचा उठाने, उसे पहचान देने में सबका योगदान है। उन्होंने राज ठाकरे से सवालिया लहजे में कहा है-यदि भारतीय सेना में राज्यीय या भाषाई द्वेष की घुसपैठ हो जाए तो! देश सुरक्षित रहेगा! हम लोग, जो विभिन्न प्रांतों के हैं, एक भारतीय के रूप में यहां बसे हैं। जब हम भारत के विकास दर (आठ फीसदी) के बारे में सुनते-जानते हैं, तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। अभी दुनिया पर हमारी धाक है लेकिन महाराष्ट्र जैसी वारदातों से हम शर्म की गर्त में लगातार धंसते जा रहे हैं।

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