गया। जिले के वीरा गांव (थाना मखदुमपुर) के शशि कुमार ने इंजीनियरिंग की कोचिंग पूरी करने के बाद पारिवारिक कारणों से परीक्षा नहीं दी। ऐसे मुकाम पर अक्सर लोग निराश हो कर राह भटक जाते हैं, लेकिन शशि ने अपने नाम को सार्थकता देने की कोशिश की- करियर के अंधेरे में उद्यमिता की चांदनी बिखेरने का प्रयास किया। शुरूआत छोटी थी। उन्होंने पांच हजार की लागत से गया जिले के मानपुर प्रखंड के सुरहरी गांव में मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया। फिर बिखरे मधुमक्खी पालकों का एक समूह बनाया। कोशिश रंग लाई। गोदाम बनाया। निरंतर मुनाफा होने से हौसला बढ़ता गया।
मात्र 12 वर्ष में मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में सफलता की नई कहानी लिखने वाले शशि कुमार प्रत्येक माह अपने कर्मचारियों को अब लगभग एक लाख वेतन देते हैं।
शशि कुमार ने 2004 में 35 लाख की लागत से स्वचालित हनी प्रोसेसिंग प्लांट सुरहरी गांव में बैठाया था। अब हर सीजन में वह शहद थोक में बेचते हैं। उनके ग्राहकों में हैं मेहसन्स, डाबर, अपीस नेचुरल, काश्मीर अपयीरी तथा कल्याणी इंटरप्राइजेज।
शशि बताते हैं कि पिता आयुर्वेद चिकित्सक हैं और खेती करते हैं। उन पर चार भाइयों के पालन का भार था। पारिवारिक कारणों से शशि इंजीनियरिंग की परीक्षा नहीं दे पाये। फिर कोलकत्ता में 1993 में कास्ट एकांउटेंसी की डिग्री ली। उन्हे नौकरी भी जल्द ही मिल गयी, लेकिन मन नहीं लगा। कुछ अलग करने लगन के साथ शशि ने 5 हजार की लागत से मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया, जिसमें 10 बक्सा थीं मधुमक्खियां। एक वर्ष बाद उनके पास 20 बक्सा की पूंजी हो गयी। शुरू-शुरू में वे शहद को दिल्ली, पंजाब से आये बिचौलियों के हाथों न्यूनतम राशि पर बेच देते थे। फिर कास्ट एकाउंटेंसी की पढ़ाई काम आयी और मधुमक्खी पालन को शशि ने कुटीर उद्योग में बदलने की ठानी। उन्होंने कोशिश कर बिखरे मधुमक्खी पालकों का एक समूह बनाया। कोशिश रंग लाई, जिसमें 30 मधुमक्खी पालकों का समूह बना। एक सीजन में 10 टन शहद बेची गयी। मधुमक्खी पालकों का उत्साह बढ़ा। काम व्यवस्थित ढंग से चलाने हेतु अपने साथ काम करने वाले मधुमक्खी पालकों के साथ शशि कुमार ने भी धारवाड़ में प्रशिक्षण लिया। 1996 में शहद जमा करने के लिए शशि कुमार ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत बैंक से 2 लाख 50 हजार कर्ज लिये। पूरीे शिद्दत से काम में जुट गये। आसपास के मधुमक्खी पालकों से शहद खरीदकर अपने गोदाम में जमा किया, जिसे थोक में बेचना शुरू किया। निरंतर मुनाफा से हौसला बढ़ा।
आनेस्टी इज द वेस्ट पालिसी के तर्ज पर काम करने वाले शशि के पास अपना मकान, बोलेरो कैम्पर वाहन है। इनका एक बेटा डीएवी में तथा एक बेटी ज्ञान भारती(गया) में पढ़ती हैं। शशि को पूसा कृषि विश्वविद्यालय ने चार बार उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कृत किया है। इसके साथ अपेड़ा एक्सपोर्ट कारपोरेशन डेवलेपमेंट भारत सरकार, नेशनल बी बोर्ड द्वारा 2004 में पुरस्कृत शशि को बिहार सरकार ने 2007 में किसानश्री से भी नवाजा है। कुल मिलाकर आज शशि और उनका परिवार मधुमक्खी पालन से संतुष्ट है। अतीत जो बहुत अच्छा नहीं है उसे वे भूल जाना चाहते हैं। वे कहते हैं कि सुबह उठते ही पहला ध्यान इस बात पर जाता है कि मधुमक्खी पालन में कहां असफल रहा और उसकी वजह क्या थी। उस कमी को दूर करने का प्रयास करते हैं।
शेक्सपियर ने ठीक ही कहा है, 'साहस अवसर पहचानता है। अगर एक कोने में बैठ कर जिंदगी बसर करें तो यह बेहतरीन टानिक कोई लाभ नहीं पहुंचाएगा। यदि साहस को अपना आदर्श मान विश्वास के साथ कदम आगे बढ़ा दें तो कुछ भी पहुंच के बाहर नहीं होगा।' शशि कुमार ने इस बात को जीवन में उतारा और बहुतों के जीवन में शहद की मिठास घोल दी।
उधर शशि कुमार से जुड़े 60 मधुमक्खी पालकों के समूह में चितरंजन कुमार ग्राम मरांची, राजेश कुमार श्रीपुर बेलागंज , धनंजय कुमार गुरुआ , नागेन्द्र सिंह इमामगंज , कमलेश कुमार इमामगंज,राहुल प्रकाश शेरघाटी (सभी गया), मो. इरशाद आलम, मो. निसार आलम(लोहरदग्गा),मो. इकबाल-आरा, रमेश कुमार-बक्सर, वीरेन्द्र कुमार मीनापुर (मुजफ्फरपुर) और ओम प्रकाश मेहंदी (पूर्वी चंपारण) भी हैं। प्रत्येक सदस्य के पास 200-200 बाक्स है। उसके बाद 100-100 बाक्स के और कई लोग हैं।
Saturday, March 08, 2008
न्यू एन्तेर्प्रेनुर्स ऑफ़ बिहार
Posted by Mukund Kumar at 11:02 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment